Saturday, June 18, 2011

इन्कलाब-ए-हिंद

अब ना सहेंगे तेरे ज़ुल्मों को,
इस सत्ता की ठनक को,
शेर-ऐ-इन्कलाब है हम,
हमारे खू से क्रांति की इबारत लिखी जाएगी.

तुझे तेरी औकात बताने ऐ सत्ताधीश,
एक बार फिर नई दिल्ली की घेरेबंदी की जाएगी.
भगवा पर चली लाठी की गूँज तुझे बहरा बनाएगी,
ऐ सल्तनत-ऐ-दिल्ली इस कहर से ना तू बचने पायेगी.

निर्दोषों पर अत्याचार आखिर कब तक सहेंगे,
तिल-तिल मर कर आखिर कब तक जियेंगे,
अब तो आर-पार करना होगा,
संतो को ठग बोलने वाले तुझे हिसाब देना होगा.

ये गद्दी अब ज्यादा दिन न टिकेगी,
तेरे अहंकार को मिटटी में मिला दे जो,
वो ज़िंदा कौम है ये, पांच साल इंतज़ार ना करेगी.

संतो को लाठी, आतंकी को बिरयानी,
ऐ नादाँ दिल्ली बहुत हुई तेरी मनमानी.
बहुत हुआ आमरण-अनशन,
अब होगी आर-पार की लड़ाई,
मिलाने तुझे मिटटी में, पूरे मुल्क ने ली है अंगडाई. 

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