Tuesday, August 27, 2013

स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्वर्गीय श्री ब्रजेन्द्र केशोरैया जी (मेरे बाबा) की पावन पुण्य तिथि पर समर्पित चंद पंक्तियाँ

सजा के सपने आँखों में चले थे हम वहां
स्वर्णिम आभा माँ की आलोकित होगी जहाँ.
माँ तुझे समर्पित थी जवानी, और बाकि जिंदगानी,
तेरे ही दम से दफ़न कर दी दुष्ट फिरंगी की मनमानी.

सींचकर अपने लहू से आजाद तुझे कराया था,
हम कि जिसके सर पे मेहरबान तेरा साया था.
जुबाँ पे हिन्द, लहू में हिन्द, रोम-रोम में हिंदुस्तान था,
जिस्म अलग हुआ मगर रूह में वो सनातन था.

हुए स्वतंत्र पर स्वावलंबी बनना बाकि था,
ली शपथ, पहना चोला, रंग-रूप जिसका खादी था.
चल पड़े लेकर ध्वज नूतन ग्राम स्वावलंबन का,
कर लिया आलिंगन आन्दोलन का,
जाति का भेद मिटाने, शिक्षा का चिरंतन दीप जलाने,
निकल पड़े हम सेनानी, भारत माँ की सेवा में लिख गए एक अमर कहानी.