तुझे चलता देखने को कितने सुख-चैन खोए होंगे।
तुझे आलोकित करने को जाने कितनी रातें काली कीं,
अपने दिनों में उनकी भी इच्छाएँ मतवाली थीं,
किंतु सकल स्वप्न जीवन के, तेरे ऊपर वार दिए,
कर शमन इच्छाओं का, सर्वस्व तुझपे हार दिए।
निस्वार्थ वात्सल्य में जाने क्या पा जाते हैं,
जीवन की तेरी कटुता को मधु समझ खा जाते हैं,
अपनी सूनी आँखों से आँसू भी पी जाते हैं,
तेरे जीवन की खुलती तुरपाई,
वो बिना बताए सी जाते हैं।
-- मुकुंद केशोरैया
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