भारत क्या है? क्या मानचित्रों में दर्शाई गई भोगोलिक सीमायें भारत को परिभाषित कर सकती हैं? और यदि ऐसा है तो क्या विभाजन के बाद का भारत अधूरा भारत है? भोगोलिक सीमायें तो विभाजन के पहले भी परिवर्तित होती रही हैं. और एक प्रश्न यह भी है की विभाजन के बाद कौन सा हिस्सा भारत कहलाने का हक़ रखता है?
निश्चित तौर पर यह जनसँख्या, क्षेत्रफल, और भोगोलिक विशेषताओं के आधार पर तय नहीं किया जा सकता. परन्तु यहाँ पर एक प्रश्न यह भी उठता है की, क्या हिमालय के बिना भारत की कल्पना की जा सकती है? क्या गंगा-यमुना के बिना भारत के अस्तित्व को आकार दिया जा सकता है. परन्तु, यदि हम चीजो को विस्तृत रूप में देखे तो हम पाएंगे की इन प्रश्नों का उत्तर भारत की वर्तमान भोगोलिक सीमायें देती हैं.
सिन्धु नदी का बहुत थोडा हिस्सा आज भारत में प्रवाहित होता है. सिन्धु-घाटी सभ्यता के अधिकांश अवशेष सीमा के उस पार है, परन्तु इससे भारत की सभ्यता-संस्कृति में कोई कमी नहीं आई. इसी प्रकार हिमालय का एक हिस्सा जैसे कैलाश-मानसरोवर आज भारत में नहीं है, परन्तु फिर भी आज का भारत एक संपूर्ण भारत बना हुआ है, या बनने को अग्रसर है. तो यह तो स्पष्ट है की मात्र भोगोलिक सीमायें भारत को परिभाषित नहीं कर सकती.
कोई भी देश ईंट-पत्थरों से नहीं बल्कि वहां के लोगों से बनता है. भारत भी भारतीयों से बना हुआ है, परन्तु जब भारतीय विदेश में जाकर बसते हैं, और यद्यपि वह कई जगह बहुतायत में भी है, तथापि हम उसको भारत नहीं मानते. आज जो पाकिस्तानी है कल वो भारतीय हुआ करते थे, परन्तु आज उनकी निष्ठा भारत-राष्ट्र के प्रति न होकर पाकिस्तान के प्रति है. हम जनसँख्या के आधार पर इस राष्ट्र को परिभाषित नहीं कर सकते. इतनी बड़ी जनसँख्या के चले जाने के बाद भी भारत, भारत है. किसी के होने-न होने से भारत के गुण-धर्म में कोई परिवर्तन नहीं आया है.
तो ऐसी क्या चीज है जो भारत को भारत बनाती है?
क्या है वो चीज जो भारत को अक्षुण रखे हुए है?
वह है उसका अटूट विश्वास. अटूट विश्वास उन सनातन मूल्यों में, जो भारत को मात्र एक राजनितिक इकाई न होकर एक जीवंत राष्ट्र बनाते है. भारत किसी स्थान-विशेष का सूचक नहीं है, वह तो विभिन्न प्रकार के के गुणों के सम्मिलन को दर्शाता है. जब हम भारत को भारत माँ कह कर अपना सम्मान जताते है, तो हम किसी व्यक्ति-विशेष या स्थान-विशेष के प्रति अपना सम्मान नहीं जताते, बल्कि हम उन गुणों के प्रति अपनी निष्ठा जता रहे होते हैं जो भारत को भारत बनाते है. यह गुण कई प्रकार के हैं जैसे धार्मिकता, अध्यात्मिकता, बंधुत्व-भाव, समानता, राष्ट्र-आराधना आदि. इन गुणों में भी सिरमोर है धर्म-अध्यात्म. यह भारत की USP है. भारत के लोगों में धर्म के प्रति एक विशेष आग्रह होता है.( यहाँ धर्म से तात्पर्य किसी एक विशेष धर्म से नहीं है.) भारत की विशेषता तथाकथित धर्म-निरपेक्षता नहीं बल्कि सर्व-धर्म सापेक्षता है.
यही वह मूल्य हैं जो भारत को संसार में एक विशिष्ट स्थान दिलाते हैं. जिस भी राष्ट्र की निष्ठा इन मूल्यों में है, वह भारत कहलाने का अधिकारी है. संसार में जहाँ-जहाँ यह आदर्श हैं, वहां-वहां भारत है.
निश्चित तौर पर यह जनसँख्या, क्षेत्रफल, और भोगोलिक विशेषताओं के आधार पर तय नहीं किया जा सकता. परन्तु यहाँ पर एक प्रश्न यह भी उठता है की, क्या हिमालय के बिना भारत की कल्पना की जा सकती है? क्या गंगा-यमुना के बिना भारत के अस्तित्व को आकार दिया जा सकता है. परन्तु, यदि हम चीजो को विस्तृत रूप में देखे तो हम पाएंगे की इन प्रश्नों का उत्तर भारत की वर्तमान भोगोलिक सीमायें देती हैं.
सिन्धु नदी का बहुत थोडा हिस्सा आज भारत में प्रवाहित होता है. सिन्धु-घाटी सभ्यता के अधिकांश अवशेष सीमा के उस पार है, परन्तु इससे भारत की सभ्यता-संस्कृति में कोई कमी नहीं आई. इसी प्रकार हिमालय का एक हिस्सा जैसे कैलाश-मानसरोवर आज भारत में नहीं है, परन्तु फिर भी आज का भारत एक संपूर्ण भारत बना हुआ है, या बनने को अग्रसर है. तो यह तो स्पष्ट है की मात्र भोगोलिक सीमायें भारत को परिभाषित नहीं कर सकती.
कोई भी देश ईंट-पत्थरों से नहीं बल्कि वहां के लोगों से बनता है. भारत भी भारतीयों से बना हुआ है, परन्तु जब भारतीय विदेश में जाकर बसते हैं, और यद्यपि वह कई जगह बहुतायत में भी है, तथापि हम उसको भारत नहीं मानते. आज जो पाकिस्तानी है कल वो भारतीय हुआ करते थे, परन्तु आज उनकी निष्ठा भारत-राष्ट्र के प्रति न होकर पाकिस्तान के प्रति है. हम जनसँख्या के आधार पर इस राष्ट्र को परिभाषित नहीं कर सकते. इतनी बड़ी जनसँख्या के चले जाने के बाद भी भारत, भारत है. किसी के होने-न होने से भारत के गुण-धर्म में कोई परिवर्तन नहीं आया है.
तो ऐसी क्या चीज है जो भारत को भारत बनाती है?
क्या है वो चीज जो भारत को अक्षुण रखे हुए है?
वह है उसका अटूट विश्वास. अटूट विश्वास उन सनातन मूल्यों में, जो भारत को मात्र एक राजनितिक इकाई न होकर एक जीवंत राष्ट्र बनाते है. भारत किसी स्थान-विशेष का सूचक नहीं है, वह तो विभिन्न प्रकार के के गुणों के सम्मिलन को दर्शाता है. जब हम भारत को भारत माँ कह कर अपना सम्मान जताते है, तो हम किसी व्यक्ति-विशेष या स्थान-विशेष के प्रति अपना सम्मान नहीं जताते, बल्कि हम उन गुणों के प्रति अपनी निष्ठा जता रहे होते हैं जो भारत को भारत बनाते है. यह गुण कई प्रकार के हैं जैसे धार्मिकता, अध्यात्मिकता, बंधुत्व-भाव, समानता, राष्ट्र-आराधना आदि. इन गुणों में भी सिरमोर है धर्म-अध्यात्म. यह भारत की USP है. भारत के लोगों में धर्म के प्रति एक विशेष आग्रह होता है.( यहाँ धर्म से तात्पर्य किसी एक विशेष धर्म से नहीं है.) भारत की विशेषता तथाकथित धर्म-निरपेक्षता नहीं बल्कि सर्व-धर्म सापेक्षता है.
यही वह मूल्य हैं जो भारत को संसार में एक विशिष्ट स्थान दिलाते हैं. जिस भी राष्ट्र की निष्ठा इन मूल्यों में है, वह भारत कहलाने का अधिकारी है. संसार में जहाँ-जहाँ यह आदर्श हैं, वहां-वहां भारत है.
bhot shi kha mukund bhai..bhartiya gun, bhartiya dharm hi wo chij hai ki ham kahete hain ki kuch bat hai ki hasti mitti nhi hmari aur na mite gi kyonki ham vishva ke jis bhi kone me jaakar in vicharo ko poshe ge wahan ek nya bharat ban jaye ga...
ReplyDeleteAditya Dwivedi
@aditya, very true yr....
ReplyDeleteits true, yahi vo shakti hai, jisne angregon ko is desh se vapas jane ko majboor kar diya tha.
ReplyDeleteइस शक्ति को पुन:जागृत करना है. और अंग्रेजो के बाद अब अंग्रेजियत को भी बाहर का रास्ता दिखाना है.
ReplyDeleteTum sahi kah rhe o mukund bhai,saare bhartiyon ko ek baar fir bhrastachar nd congress se desh ko aazad karne ke liye wahi shakti dikhani hogi........
ReplyDeleteJAI HIND.........JAI HINDU..........JAI BHARAT.......
Tum sahi kah rhe o mukund bhai,saare bhartiyon ko ek baar fir bhrastachar nd congress se desh ko aazad karne ke liye wahi shakti dikhani hogi........
ReplyDeleteJAI HIND.........JAI HINDU..........JAI BHARAT.......
HARENDRA SINGH