Tuesday, September 28, 2021

ग़ज़ल

खुल गए किसी दिन तो ढह जाएंगे,
थमे हुए हैं जो अब तक, वो आंसू बह जाएंगे.

भला हो उनका, कि वो अब तक मिरे दुश्मन हैं,
गर हुए दोस्त, जाने क्या कह जाएंगे.

वो हैं तरक्की-पसंद ख़ुद-ग़र्ज़, उन्हें ये सफर मुबारक,
हम हैं वतन-परस्त बे-ग़रज़, हम यहीं रह जाएंगे.

परेशां हैं वो बहुत, तो फिक्रमंद हम भी कम नहीं,
फिर भी सीने में हौंसला है, हम सब सह जाएंगे.

जब तक न हो मक़सद मुक़म्मल, दरिया बन जा,
बहने दे खुद को मुसलसल, बाँध सारे ढह जाएंगे.

-- मुकुंद केशोरैया

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