जब बेहद घना हो जाये अँधेरा,
तब समझना, नज़दीक ही है सवेरा.
छा सकता है भला कब तक ये अँधियारा,
तब समझना, नज़दीक ही है सवेरा.
छा सकता है भला कब तक ये अँधियारा,
लाख धुंधलाए, पर होके रहता उजियारा.
जब तक है ह्रदय में आशा का दीप जलता,
पाषाण सदृश संकट भी है मोम सा पिघलता.
गहरा सकती हैं भला कब तक ये आंधियां,
खिलती धूप एक दिन, गुनगुनाती हैं वादियां.
गहरा सकती हैं भला कब तक ये आंधियां,
खिलती धूप एक दिन, गुनगुनाती हैं वादियां.
जब तक है मन में सफलता का विश्वास, फिर भला
मार्ग के अवरोध कैसे कर सकते निराश.
प्रलय के ये बादल भला कब तक घिरते,
प्रलय के ये बादल भला कब तक घिरते,
बन के अमृत एक दिन खुद बरसते.
जब तक सत्य पर निष्ठा रहती अटूट,
लाख चमके मगर हारता एक दिन वो झूठ.
ये दुखदाई भुजंग भला कब तक सबको लीलेगा,
बन के महादेव कोई, एक दिन ये गरल पी लेगा.
बन के महादेव कोई, एक दिन ये गरल पी लेगा.
-- मुकुंद केशोरैया
Yet an another beautiful truth you have expressed thru your poem. AMAZING..Keep writing .. Hope to see your book release soon..
ReplyDeleteGod Bless 🙏