दिल करता है,
फिर एक बार बचपन जी लूँ,
मासूम चमकती आँखों से,
फिर वही चाँदनी पी लूँ।
मासूम चमकती आँखों से,
फिर वही चाँदनी पी लूँ।
पर पता नहीं क्यूँ,
इस चाँदनी में वो बात नहीं है,
दिल कहता है,
ये वो बचपन वाली रात नहीं है।
मैं तो वही हूँ,
पर शायद ये वो कायनात नहीं है,
या शायद दुनिया वही है,
मेरे अंदर वो जज़्बात नहीं है।
इस चाँदनी में वो बात नहीं है,
दिल कहता है,
ये वो बचपन वाली रात नहीं है।
मैं तो वही हूँ,
पर शायद ये वो कायनात नहीं है,
या शायद दुनिया वही है,
मेरे अंदर वो जज़्बात नहीं है।
अब जो भी है,
ये चाँद कुछ फीका सा नज़र पड़ता है,
पहले नर्म सा अंदर उतरता था जो,
अब खंजर सा चलता है।
ऐसी ही कहानी इन तारों की है,
खोई रवानी इन सारों की है।
पहले जो शान से झिलमिलाते थे,
आसमाँ से ज्यादा आँखों में टिमटिमाते थे,
वो अब मुरझाये से रहते हैं,
न अपना दर्द किसी से कहते हैं।
ये चाँद कुछ फीका सा नज़र पड़ता है,
पहले नर्म सा अंदर उतरता था जो,
अब खंजर सा चलता है।
ऐसी ही कहानी इन तारों की है,
खोई रवानी इन सारों की है।
पहले जो शान से झिलमिलाते थे,
आसमाँ से ज्यादा आँखों में टिमटिमाते थे,
वो अब मुरझाये से रहते हैं,
न अपना दर्द किसी से कहते हैं।
और मैं हैरान हूँ,
सुनके इनकी बात ज्यादा परेशान हूँ,
कहते हैं इस सूनेपन की दोषी हैं आपकी आँखें,
हम चाँद-तारों की चमक तो आज भी वही है,
श्रीमान, आप अपनी आँखों में झांके!
सुनके इनकी बात ज्यादा परेशान हूँ,
कहते हैं इस सूनेपन की दोषी हैं आपकी आँखें,
हम चाँद-तारों की चमक तो आज भी वही है,
श्रीमान, आप अपनी आँखों में झांके!
-- मुकुंद केशोरैया
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