अच्छा-बुरा, सुख-दुःख, जीत-हार,
सब मिलता है जीवन यात्रा में,
कुछ कम कुछ अधिक मात्रा में,
महत्व मात्रा का नहीं यात्रा का है,
आकर्षण मंज़िल का नहीं रास्ते का है।
सब मिलता है जीवन यात्रा में,
कुछ कम कुछ अधिक मात्रा में,
महत्व मात्रा का नहीं यात्रा का है,
आकर्षण मंज़िल का नहीं रास्ते का है।
मंज़िल तो अंत है - प्रयासों का, कर्मों का,
जीवन सार्थकता ध्येय में नहीं धारणा में है,
साध्य में नहीं साधना में है।
जीवन वो पंथ है - जिसपर महत्वपूर्ण हैं चलना,
चाहे दौड़ना, गिरना या गिर के संभलना,
ज़रूरी है चलते रहना।
जीवन वो पंथ है - जिसपर महत्वपूर्ण हैं चलना,
चाहे दौड़ना, गिरना या गिर के संभलना,
ज़रूरी है चलते रहना।
क्योंकि चलना ही मानव प्रकृति है,
मंज़िल पाके थम जाना विकृति है,
मंज़िल की ओर बढ़ता संघर्षरत मानव,
ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है।
-- मुकुंद केशोरैया