Tuesday, May 24, 2011

आरक्षण का अखाडा

घर के बाहर खड़ा हूँ, सामने सड़क है,
सड़क क्या है आरक्षण का अखाडा है.
इसी अखाड़े में आरक्षण के दाव-पेंच चले जाते है,
बसे तोड़ी जाती है पुतले फूके जाते है.


सोचता हूँ अगर सड़क भी आरक्षित होती तो,
तो शायद कुछ ही सड़क पर चल पाता,
विप्रसमाज में जन्म लेने की कुछ तो सजा पाता.

वैसे ये सड़क राजनीति की प्रयोगशाला भी है,
यहाँ जातियों को लेकर विभिन्न प्रयोग किये गए,
और लोकतंत्र को नए-नए आयाम दिए गए.
खुद को पिछड़ा साबित करने की होड़ इन्ही प्रयोगों का परिणाम है,
ऐ मोकापरस्त राजनीति तुझको बारम्बार प्रणाम है.

कभी जूते चार लगाने वाले आज सर्वजन हिताय बोल रहे,
नहीं किसी के हितेषी, ये कौए है जो कोयल सी बोली बोल रहे.
भाई-भाई मे भेद कराती ये राजनीति की माया है,
नहीं मुलायम भी नहीं, अब कठोर होने का समय आया है.

इन्ही सडको पर बिछाई जाती है शतरंज की वो बिसात,
शत-शत भाइयो में रंज कराकर अब होती है भाईचारे की बात.


इसी सड़क पर एक ट्रक ने एकदिन मुझको कुचला था,
तब मै, मै से मुक्त हो पाया था.
अब इंतज़ार है उस पल का जब कोई ट्रक ऐसा भी आएगा,
जो जातियों को कुचल कर, हिन्दू समाज को मुक्त कराएगा. 
 

1 comment:

  1. sadiyon se chali aa rhi jat pat ki is samasya se, jo ki hamare hi porvajo ke den hai ab chutkara pana hoga,is liye nhi ki aarakchan mujhe nhi mil rha balki is liye ki hindu samaj ko ab ek dor me bandhna hi hoga nhi to desh ko barbad hone se koi nhi rok sakta..........
    aditya dwivedi

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