आज समय आया है.
खोया वैभव लोटाने का,
माँ भारती को पुनः विश्व-गुरु बनाने का.
अब धूल छटेंगी उस स्वर्णिम आभा से,
जिससे प्रदीप्त यह विश्व हुआ,
अब पुनः बहेगी वह ज्ञान-धारा,
जिसने संसार को सभ्य किया.
पुण्य तुम्हारा होगा यदि माँ के काम आ जाओगे,
इस पावन यज्ञ में अपनी आहुति चढ़ा जाओगे.
माँ के वैभव में ही पुत्रो की जय होती है,
राष्ट्र बिन उन्नति तो अधोगति सी होती है.
माँ को ताज पहनना है, हाँ, निश्चय ही अब यह होगा,
पर याद रहे वीरपुत्रो, निज-स्वार्थ से न संकल्प पूरा होगा.
यदि भविष्य की आहट न सुन पा रहे, तो वर्तमान पर कान धरो,
प्रेरणा इतिहास से लेकर निज राष्ट्र को महान करो.
यदि संसार बचाना है, और आगे बढ़ाना है,
तो नेतृत्व बदलना होगा, अब यह भार भारत को अपने कंधो पे लेना होगा.
पूरी स्रष्टि ताक रही, सम्पूर्ण मानवता बिलख रही,
भोग-विलास से त्रस्त यह दुनिया एक योगी की बाह जोट रही.
तो उठो अब न देर करो, बस मन में थोडा धैर्य धरो,
भारत माँ की खातिर अब अपना सर्वस्व तजो.
आलस्य-प्रमाद से क्या होगा, उठो जागो कुछ कर्म करो,
मानवता की खातिर इस राष्ट्र को सशक्त करो.
खोया वैभव लोटाने का,
माँ भारती को पुनः विश्व-गुरु बनाने का.
अब धूल छटेंगी उस स्वर्णिम आभा से,
जिससे प्रदीप्त यह विश्व हुआ,
अब पुनः बहेगी वह ज्ञान-धारा,
जिसने संसार को सभ्य किया.
पुण्य तुम्हारा होगा यदि माँ के काम आ जाओगे,
इस पावन यज्ञ में अपनी आहुति चढ़ा जाओगे.
माँ के वैभव में ही पुत्रो की जय होती है,
राष्ट्र बिन उन्नति तो अधोगति सी होती है.
माँ को ताज पहनना है, हाँ, निश्चय ही अब यह होगा,
पर याद रहे वीरपुत्रो, निज-स्वार्थ से न संकल्प पूरा होगा.
यदि भविष्य की आहट न सुन पा रहे, तो वर्तमान पर कान धरो,
प्रेरणा इतिहास से लेकर निज राष्ट्र को महान करो.
यदि संसार बचाना है, और आगे बढ़ाना है,
तो नेतृत्व बदलना होगा, अब यह भार भारत को अपने कंधो पे लेना होगा.
पूरी स्रष्टि ताक रही, सम्पूर्ण मानवता बिलख रही,
भोग-विलास से त्रस्त यह दुनिया एक योगी की बाह जोट रही.
तो उठो अब न देर करो, बस मन में थोडा धैर्य धरो,
भारत माँ की खातिर अब अपना सर्वस्व तजो.
आलस्य-प्रमाद से क्या होगा, उठो जागो कुछ कर्म करो,
मानवता की खातिर इस राष्ट्र को सशक्त करो.
awesome bhai.............
ReplyDeleteaditya dwivedi