है बेपनाह मोहब्बत ज़िन्दगी से पर,
जब आएगी मौत, चेहरे पे शिकन न होगी।
न कोई परहेज़ है जन्नत के ख़्वाबों से मुझे,
ग़म होगा तो बस ये, कि हिंदुस्तान की मिट्टी न होगी।
जब आएगी मौत, चेहरे पे शिकन न होगी।
न कोई परहेज़ है जन्नत के ख़्वाबों से मुझे,
ग़म होगा तो बस ये, कि हिंदुस्तान की मिट्टी न होगी।
रहूं भले मरहूम दुनिया भर की सरवत से,
परचम हिन्द का लहरे, मेरे ही दम से।
उठा कर देख लो दुनिया भर की तारीख़ को,
हुई है दुनिया रौशन इस मुल्क की शफ़क़त से।
न मिलेगा तुमको मेरी ज़्यादती का एक भी निशाँ,
हर बार लड़ा हूँ मैं, बचाने अपने वजूद को।
ज़ुल्मी आमादा था मिटाने को मेरी हस्ती,
वो तिफ़्ल छू न सका मेरे होंसले का आसमाँ।
हर बार लड़ा हूँ मैं, बचाने अपने वजूद को।
ज़ुल्मी आमादा था मिटाने को मेरी हस्ती,
वो तिफ़्ल छू न सका मेरे होंसले का आसमाँ।
अब तो ये मक़ाम आना ही चाहिए,
इस इज़्तिराब को आराम आना ही चाहिए।
वो जो दूर आफ़ाक़ पे झिलमिलाता हिंदुस्तान है,
उसे फ़लक़ पे चढ़ आफ़ताब होना ही चाहिए।
इस इज़्तिराब को आराम आना ही चाहिए।
वो जो दूर आफ़ाक़ पे झिलमिलाता हिंदुस्तान है,
उसे फ़लक़ पे चढ़ आफ़ताब होना ही चाहिए।
-- मुकुंद केशोरैया
Beautifully expressed Mukund
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