Thursday, December 15, 2011

मोहब्बत-ए-वतन

हम भी आँखों में सपने,
दिल में हसरतें रखते हैं,
ये तो सुरूर है मोहब्बत-ए-वतन का,
जो जान हथेली पे लिए फिरते हैं.

सुकून से ज़िन्दगी फिर जियेंगे कभी,
अभी तो जान न्योछावर किये चलते हैं.

सूखा नहीं है हमारी आँखों का पानी,
ये तो वक्त का तकाजा कुछ और है,
वरना हम भी आँखों में नमी रखते हैं.
   
वतन के नाम है अपनी जवानी,
वरना सपने हम भी रूमानी रखते हैं.

3 comments:

  1. MAR K B NA MITEGI WATAN KI MOHABBAT

    MERI MITTI SE B KHUSHBU-E-WATAN AAYGI.....

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  2. वतन के लिए मोहब्बत तो हम भी रखते हैं|
    मगर ये तो सितम-ए-ज़िन्दगी है ,
    जो हमे हमारी मोहब्बत दर्शाने नहीं देता||

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  3. kya bat hai!! dubey ji aap to shayar ho gaye.....

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