कुछ कहतीं है ये राहें,
पर तू है मंजिल पाने को बेताब,
अपनों को कर नज़रंदाज़, चला जा रहा बेखबर.
कल मंजिल तो होगी पर ना होगा कोई साथी,
जश्न मानाने को, खुशियाँ बाँटने को.
तू चला है अपनों को भूलकर,
अपनों के सर पर पाँव रखकर.
आगे बढने की भूख, पैसा कमाने की हवस,
इन्सान को कर रही इन्सान से अलग,
इस भूख के आगे हर रिश्ता बेमानी हो गया,
पैसा इस कदर इन्सान पे हावी हो गया.
ये राहें कहतीं हैं, साथ ले उनको,
जो छूट गए पीछे कभी,
वो जो तेरे साथी थे सभी,
वो जो तेरे अस्तित्व को अर्थ देते हैं,
वो जो तेरे दर्द में रो देते हैं,
साथ ले उन्हें,
क्योंकि उनका होना मंजिल को सार्थक बनाएगा,
और तभी सही माएनों में इन्सान सफल हो पायेगा.
पर तू है मंजिल पाने को बेताब,
अपनों को कर नज़रंदाज़, चला जा रहा बेखबर.
कल मंजिल तो होगी पर ना होगा कोई साथी,
जश्न मानाने को, खुशियाँ बाँटने को.
तू चला है अपनों को भूलकर,
अपनों के सर पर पाँव रखकर.
आगे बढने की भूख, पैसा कमाने की हवस,
इन्सान को कर रही इन्सान से अलग,
इस भूख के आगे हर रिश्ता बेमानी हो गया,
पैसा इस कदर इन्सान पे हावी हो गया.
ये राहें कहतीं हैं, साथ ले उनको,
जो छूट गए पीछे कभी,
वो जो तेरे साथी थे सभी,
वो जो तेरे अस्तित्व को अर्थ देते हैं,
वो जो तेरे दर्द में रो देते हैं,
साथ ले उन्हें,
क्योंकि उनका होना मंजिल को सार्थक बनाएगा,
और तभी सही माएनों में इन्सान सफल हो पायेगा.
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