देह निर्बल है, पर मन अड़ा है,
हर चुनौती से मेरा संकल्प कहीं बड़ा है.
आज जो है, वो कल नहीं होगा,
चढ़ तिमिर के सिर, सवेरा होगा ही होगा.
नहीं मनुज है, परिस्थितियों का दास,
समयधारा मोड़ दे, जिसके अंतर्मन हो प्रभु का वास.
विस्मय से देखता सकल संसार, उस मानव रचित कहानी को,
जिस में हो आतप-अंधड़, नमन ऐसी जवानी को.
है हठी समय, जो मचल पड़ा, कहर बन मनुज पे टूट पड़ा,
मैं साहस की तरंग प्रचंड, चीर मेघ का अंतर्तम, कर्म मार्ग पर बढ़ चला.
- मुकुंद केशोरैया